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दोस्तों को जो आज़मा बैठे / ओंकार सिंह विवेक

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दोस्तों को जो आज़मा बैठे,
अपनी ही मुश्किलें बढ़ा बैठे।

कब सज़ा होगी उन अमीरों को,
हक़ ग़रीबों का जो दबा बैठे।

आपको कैसे हुक्मरानी दें,
आप तो साख ही गँवा बैठे।

यार हमने तो दिल-लगी की थी,
आप दिल से उसे लगा बैठे।

क्या हुआ दौर-ए- नौ के बच्चों को,
अपनी तहज़ीब ही भुला बैठे।

क़द्र जो कुछ करें न औरों की,
ऐसे लोगों में कोई क्या बैठे।

कितने ही पंछियों का डेरा था,
आप जिस पेड़ को गिरा बैठे।