भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घुसपैठिया / गुलशन मधुर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:14, 13 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलशन मधुर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

ऐमेज़ॉन के वर्षावनों में भी
सघन आच्छादनों के
घनघोर अंधेरों में
रास्ता ढूंढ ही लेती है
सूरज की
जीवट भरी
कोई इक्का-दुक्का
प्रखर किरण

बंद दरवाज़ों और खिड़कियों वाले
क़िलेनुमा मकानों के भी
कपाटों की झिर्रियों से
झांका करती है
रोशनी की
कैसी भी कृशकाय सही
लेकिन भय से अनजान
कोई विद्रोही लकीर

कुछ ऐसा ही
ग़ज़ब अक्खड़मिज़ाज होता है
सत्ता के
झूठ के
और संशय के
निबिड़ तमस को भी
देर-सबेर
अंदर तक भेद देने वाला
एक मुंहज़ोर घुसपैठिया
सत्य का
दुस्साहसी, अतिक्रमी उजाला

कर तो लो
कितने ही जतन रोकने के