Last modified on 13 नवम्बर 2022, at 21:21

गुलाब और कविता / गुलशन मधुर

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:21, 13 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलशन मधुर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शहर के बीचोंबीच
अनधिकार फैलते
मौक़ापरस्त खरपतवार
और अराजक घास के
मुंहज़ोर जंगल में
बिना किसी चेतावनी के
खिल गया है
मंद मंद मुस्कुराता
एक ढीठ गुलाब

शायद ऐसे ही
न जाने कहां से
जीवन का रस खींच
मन के बंजर में
उग आती है कविता