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मेरे गीत अगीत सही / गुलशन मधुर

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वे अपने रस्ते के राही, हमको अपनी रीत सही
अपने दिन जैसे भी बीते और जाएंगे बीत सही

वे हैं शीशमहल के वासी, आदत हमें बगूलों की
वे जीते हैं राजनीति को, अपनी राह उसूलों की
घर-चौबारा अपनी महफ़िल, वे दरबारों के रसिया
उनसे तुलना हो भी कैसे हम जैसे पथभूलों की
उनका सुख है ठकुरसुहाती, हमको अपने मीत सही

नातों को सिक्कों की तरह भुनाना हमें नहीं भाया
बात-बात पर हानि-लाभ गिनवाना हमें नहीं भाया
उनको शतरंजी चालों की आदत है, तो हुआ करे
सम्बंधों के बीच बिसात बिछाना हमें नहीं भाया
हम को अपनी हार भली है, उनको उनकी जीत सही

जिन्हें रुचे वे गीत सजाएँ कोरे शब्दों के छल से
हमको तो वह कहना है जो निकला है मन के तल से
उनकी एक अलग दुनिया है, अपनी एक अलग दुनिया
अपना सुख मन की कह लेना, उनका उत्सव और जलसे
उन्हें मुबारक यश, प्रशस्तियाँ, अपने गीत अगीत सही