भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महफ़िलों में बहुत हंसता है वो / गुलशन मधुर
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:59, 13 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलशन मधुर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
महफ़िलों में बहुत हंसता है वो
क्या पता किस क़दर तन्हा है वो
क्या ख़बर उसके दिल में क्या ग़म है
चुप-सा हर वक़्त सोचता है वो
एक सपना है, टूटता ही नहीं
जागती नींद का सपना है जो
तू उसकी सोच में कहीं भी नहीं
तेरे हर ख़्वाब में बसा है जो
कुछ तो तुझसे ख़ता हुई होगी
वरना क्यों इस क़दर ख़फ़ा है वो
उसकी तन्हाई की रौनक़ मत पूछ
भीड़ में रह के भी तन्हा है जो
एक दुनिया है जो है तुझसे निहाँ
उससे आगे कि तू समझा है जो