भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्त्रियाँ-2 / सांत्वना श्रीकांत
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:47, 16 नवम्बर 2022 का अवतरण (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सांत्वना श्रीकांत }} {{KKCatKavita}} <poem> जब-ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब-जब वो ज़ोर से हँसी
ब्रह्मांड भी मुस्कुराया होगा उनकी हंसी में
चहुं दिशायें गुंजायमान हुई होंगी
अपनी हँसने की क्रिया में
देर तक नहीं सोचा उन्होंने
कि घर नहीं सँभलेगा तो
स्वयं को अपराधी घोषित नहीं कर पाएँगी
पाप।-पुण्य का लेखा नहीं लिखा जाएगा
मुक्त हुईं वो ठहाके के साथ
अमरत्व भी महसूस किया होगा उस क्षण।
दरअसल हँसना
एक ख़ौफ़नाक क्रिया हुई उनके लिए।