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शग़्ल बेहतर है इश्क़ बाज़ी का / वली दक्कनी
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शग़्ल* बेहतर है इश्क़ बाज़ी का------काम
क्या हक़ीक़ी* व क्या मजाज़ी* का-----असली, नक़ली
हर ज़ुबाँ पर है मिस्ले-शाना मदाम
ज़िक्र तुझ ज़ुल्फ़ की दराज़ी का
होश के हाथ में इनाँ* न रही--------लगाम
जब सूँ देखा सवार ताज़ी* का------ अरबी
गर नहीं राज़-ए-इश्क़ से आगाह
फ़ख़्र बेजा है फ़ख़्र-ए-राज़ी का
ऎ वली सर्व क़द कूँ देखूँगा
वक़्त आया है सरफ़राज़ी*------सर ऊँचा करने का