Last modified on 19 नवम्बर 2022, at 04:51

बग़ावत / लिली मित्रा

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:51, 19 नवम्बर 2022 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अलग बहना चाहे
नदी की कोई एक लहर,
कोई बूँद छिटक कर सागर से
फिर से बन जाना चाहे बादल,
जिस डगर जाते हों
हवा के झोंके झूमते
कोई एक झोंका तोड़ कर खुद को
चुपचाप निकल जाए,
किसी ख़ामोश से
जंगल के झुरमुटों तरफ ...
कभी ऐसा होना सम्भव हो सके तो बताना मुझे भी,
मै भी एक टुकड़ा तोड़कर खुद से
उस नदी की लहर,
उस सागर की बूँद
और
उस हवा के बागी झोंके -संग
भेज देना चाहती हूँ।
बगावत की सुगबुगाहट को
कुचलने का अब जी नहीं करता।
-0-