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इंतजार / मनोज भावुक

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जेठ के दुपहरिया में
खटत बा।

एह उमेद पर
कि एक दिन सावन आई
त मन के धरती हरियरा जाई।
बाकिर

हाय रे हमार पागल परान
घाम में जर के राख भइल
राह निहारत लाश भइल
आ अब

एह फसल खातिर
का सावन का भादो?