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गरीबी / मनोज भावुक
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गरीबी !
ना हँसे देले ना रोवे
ना जीये देले ना मूए
साँप- छुछुंदर के गति क देले
पागल मति क देले
खोर-खोर के खाले
आ
मजबूर क देले आदमी के
आग प चले खातिर,
गदहा के बाप कहे खातिर,
आ दुधारू गाय के लात सहे खातिर ।