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तुम हो मुझमें / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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तुम हो मुझमें
मैं हूँ तुझमें
इसका है विश्वास बहुत।
दूरी तो केवल
भौगोलिक
तुम हो मेरे पास बहुत।
बहुत सितारे
इस अम्बर में
कभी नहीं,
आपस में मिलते,
बहुत सुमन हैं
हर क्यारी में
कभी नहीं
हर पल वे खिलते,
सबकी है
अपनी मज़बूरी
पास बहुत
फिर भी है दूरी
बची मिलन की आस बहुत।
खुद को देखूँ
तुम ही दिखते
तुम हो दर्पन
रूप सँवारूँ,
मुझमें मेरा
बचा नहीं कुछ
पल-पल अपना
तुझ पर वारूँ
रातें सूनी
दिवस अधूरा
तुझ बिन कैसे
मैं हूँ पूरा
खलता यहाँ प्रवास बहुत।
[ 8-11-2022]
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