भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाने से खोना अच्छा है / जयशंकर पाठक 'प्रदग्ध'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 4 दिसम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयशंकर पाठक 'प्रदग्ध' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे उपवन के पुष्प प्रथम! पाने से खोना अच्छा है।
क्या होगा यदि सब पा जाओ, सारी खुशियाँ, सारे वैभव?
अभिशाप इसे ही कहते हैं, जब चाह न हो कोई अभिनव।
मन शांत रहे इस हेतु कभी, जी भर के रोना अच्छा है।
मेरे उपवन के पुष्प प्रथम! पाने से खोना अच्छा है।
तुम लक्ष्य सदा ऐसे चुनना, जिसके आगे भी राह रहे।
नूतन प्रतिमान गढ़ो न गढ़ो, आगे बढ़ने की चाह रहे।
नव स्वप्न पलें इस हेतु तनय! पलकों को धोना अच्छा है।
मेरे उपवन के पुष्प प्रथम! पाने से खोना अच्छा है।
खोना, प्रिय! तब ही संभव है, कुछ भी जब पास तुम्हारे हो।
वह भी क्या कुछ खो सकता है, जो विधि के लेख सहारे हो?
बिन कर्म मिली रोटी से तो, भूखे ही सोना अच्छा है।
मेरे उपवन के पुष्प प्रथम! पाने से खोना अच्छा है।