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अहं-मुक्ति / कैलाश वाजपेयी

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मैं तुझे रक्त की आख़िरी बूँद तक दूँगा
उस घुमड़न के बदले
जो तेरे अंतर में
उठती है

यदि मुझे लग सके
वह घुमड़न
मेरे ही कारण है
मेरे ही ख़ातिर है
यों ही रहेगी

मैं हर सुविधा
संबंधी
और
एकांत

सब छोड़ दूँगा
उस आह के बदले
जो तेरे
होंठों पर
उगती है

यदि मुझे लग सके
वह केवल मेरी ही
दूरी का घोष है
यों ही उठेगा !