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दिन डूबा / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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दिन डूबा

नावों के

सिमट गए पाल।


खिंच गई नभ में

धुएँ की लकीर

चढ़ गई

तट पर

लहरों की पीर

डबडबाई

आँख- सा

सिहर गया ताल ।


थककर

रुक गई

बाट की ढलान,

गुमसुम

सो गया

चूर ­चूर गान

हिलते रहे

याद के दूर तक रूमाल।