बहुत अँधेरा
दूर सवेरा
दीपक जलते रहना ।
छोटी बाती
एक न साथी
तुझको सब कुछ सहना ।
पथ अनजाना
चलते जाना
दुख न किसी से कहना ।
तुझको घर-घर
बनकर निर्झर
अँधियारो में बहना ।
-0-(15-8-89: तिब्बत बुलेटिन-जनवरी-90, साहित्याकाश जुलाई-90, उजाला-अक्तुब्र 90)