भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखो / विपिनकुमार अग्रवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:56, 12 नवम्बर 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तट है जैसा
होता है समुद्र का

पाँव
छोड़ते थे जो चिन्ह
रेत पर
डूब गए हैं गहरे
यह
किनारे पर
आई लहरें
किन गतियों की
पहचान है।

यह गली वैसी
जैसी किसी शहर की

मटियाली हवा में
तैरती मछलियाँ
जुड़वाँ
ढूंढ़ती हैं
आज भी
पीले पत्तों में नवीन पल्लव
नग से जड़ी
राजा की अंगूठी

अभिलाषा पूरी करने वाली
कैसी भी आश्वस्ति
कोई परिचित भंगिमा
बाज़ार में घूमता
वनवासी साथी
मृगशावक-सा
और यह रहे
शाश्वत चिन्ह--

स्वप्न के पीछे
छुपे यथार्थ का
प्रिय रहस्य
मन्दिर के विलास में
प्रतिमा
पावन
रंग बदले
वत्सल पयोधर
आँचल तले