भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक मुक्तक / विलिमीर ख़्लेबनिकफ़ / रमेश कौशिक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 19 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विलिमीर ख़्लेबनिकफ़ |अनुवादक=रम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
घोड़े जब मरते हैं
— हाँफते हैं
फूल जब झरते हैं
— मुरझाते हैं
तारे जब मरते हैं
— ठण्डे पड़ जाते हैं
आदमी जब मरते हैं
— गीत गाते हैं
अंग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक