भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
योजनाओं का शहर-2 / संजय कुंदन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:45, 12 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय कुंदन |संग्रह= }} <Poem> वह अपनी योजना में लाखों ...)
वह अपनी योजना में
लाखों लोगों का नियन्ता है
--जब उसने यह कहा तो उसके चेहरे का रंग
बदलने लगा
उसने मेरा चेहरा पढ़ने की कोशिश की
शायद वह भाँप रहा था कि
मैम उसकी योजना से
अभिभूत हो रहा हूँ कि नहीं
मैं उससे डर रहा हूँ कि नहीं
फिर उसने मेरी तरफ़ चाय की प्याली
इस तरह बढ़ाई
जैसे मुझ पर कृपा कर रहा हो
एक और शख़्स ने बताया कि
अगले पाँच सालों में
वह एक बड़ा सौदागर बनकर रहेगा
तब वह एक सड़क ख़रीदेगा
और उसका नाम बदलकर
अपने दादा के नाम पर रख देगा।