भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
योजनाओं का शहर-4 / संजय कुंदन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:49, 12 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय कुंदन |संग्रह= }} <Poem> राष्ट्र अमुक वर्ष तक पू...)
राष्ट्र अमुक वर्ष तक पूर्ण विकसित हो जाएगा
तब हम ताक़तवर देशों में शुमार किए जाएंगे
--एक-एक योजनाकार बता रहाथा
वह गिना रहा था कि
तब ये-ये चीज़ें होंगी हमारे पास
उस समय मैं निर्गुन सुन रहा था
मुझे नहीं पता था
अगले कुछ पलों के बारे में
और मैं सोचना भी नहीं चाहता था
मेरा मन एक कलन्दर की तरह
न जाने किस पगडंडी पर चला जा रहा था
ठीक ऊपर उड़ते एक अकेले हंस को देखते हुए।