भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुशासन नदी का / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:37, 24 जनवरी 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                                                                                                    
बलिष्ठ हैं
तटबंध की भुजाएँ
यह कहना -
उतना ही झूठ है
जितना यह -
कि सूरज ने
उगने को मनाही कर दी
बादल हों; भिन्न विषय है
ठीक वैसे ही
नदी तय सीमा में
बह रही है
इसका यह अर्थ कदापि नहीं
कि तटबंध बलवान हैं
धन्यवाद कहो नदी को
कि वह संलग्न है
कर्त्तव्य- निर्वाह में
और अनुशासित है;
लेकिन युगधर्म है कि
नदी का अनुशासन
मान लिया गया सदियों से
उसकी दीनता का प्रतीक,
और तटों को
दे दिया गया
अधिकार बाँधे रखने का
अकारण ही
है ना दुराग्रह और धृष्टता!!
-0-06-01-2023