भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलो चलें मन सपनो के गाँव में / प्रदीप
Kavita Kosh से
Arti Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:14, 5 फ़रवरी 2023 का अवतरण
चलो चलें माँ सपनो के गाँव में
काँटों से दूर कहीं फूलों की छाँव में
चलो चलें माँ..
हो रहे इशारे रेशमी घटाओं में
चलो चलें माँ...
आओ चलें हम एक साथ वहां
दुःख ना जहाँ कोई गम ना जहाँ
आज है निमंत्रण सन सन हवाओं में
चलो चलें माँ...
रहना मेरे संग में हर दम
ऐसा ना हो के बिछड़ जायें हम
घूमना है हमको दूर की दिशाओं में
चलो चलें मन सपनो के गाँव में
काँटों से दूर कहीं फूलों की छाँव में
चलो चलें माँ...