भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूलवश और जान-बूझकर / नासिर अहमद सिकंदर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:26, 13 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=ये फूल नहीं / अजित कुमार }} <Poem> क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ चीज़ें छूटतीं हमसे
भूलवश
कुछ छोड़ते जान-बूझकर

छाता, स्वेटर, रूमाल, चश्मा, किताब
चाबियाँ, कंघी, पैन
और भी कई चीज़ें
छूटतीं भूलवश
माचिस की खाली डिब्बी
पैकेट सिगरेट खाली
या आज का ही अख़बार आदि
छोड़ते हम
जान-बूझकर

समय-सारिणी देखे बग़ैर
ट्रेन छूटती भूलवश
और ठसाठस भरी बस देखकर
छोड़ते भी हम
उसे जान-बूझकर

इस तरह
जीवन जीते हुए उसकी प्रक्रिया से बाहर
काव्य-प्रक्रिया में
समय छूटता भूलवश
एक नवोदित कवि से

और एक पुरस्कृत कवि
समय छोड़ता
जान-बूझकर।