भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर रोज / राहुल द्विवेदी
Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:09, 28 फ़रवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सोचता था कि
मैं भी
लिखुंगा कुछ नया सा
हर सुबह
कि सुबह की सुनहली धूप
घास पर बिखरे मोती
मैं भी निहारूँगा
अपनी नजर से
हर रोज
पर...
हर रोज एक कविता?
हो न सका
कमबख्त!
महीनों हो गए
कुछ सोचे हुए
कुछ लिखे हुए
मैं
विचारशून्यता को
जी रहा हूँ अब
समय के साथ साथ!