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चाँद पर / ओसिप कलिचेफ़ / हरिवंश राय बच्चन

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मैंने देखा स्वप्न, चाँद पर पहुँच गया हूँ ।
जैसे पृथ्वी की सब चीज़ें वहाँ पहुँचकर
भार-हीन हो जाती हैं, वैसे ही मेरी
सारी संसारी चिन्ताओं का मुझपर से भार हट गया ।

चाँद, सचमुच ऐसा हो जाए औ’ निश्चय ही
वज़न विचारों से हट जाए, बस, रह जाएँ
चन्दलोक में मात्र अजाने, ख़याल हवाई,
सपने धुन्धले, उड़ा करें व्यक्तित्त्व शून्य में,

तो यह भार-हीनता कितनी बोझिल होगी !
हुड़क उठेगी अपनी परिचित, पूत, पुरातन
धरती पर वापस जाने की, पग रखने की,
चन्द्र-जनित पर झटक-झाड़कर,
अपने सुख, दुख, इच्छाओं के सहज भार को
सहज भाव से अपनाने की ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : हरिवंश राय बच्चन