भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वरना भूल चुका होता बहुत कुछ / श्याम सुशील
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 13 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम सुशील |संग्रह= }} <Poem> थोड़ी-सी मिट्टी थोड़ी-...)
थोड़ी-सी मिट्टी
थोड़ी-सी हवा
थोड़ी-सी धूप
थोड़ा-सा पानी लेकर
मैं आया था यहाँ
आज सोचता हूँ
अच्छा हुआ खाली हाथ
नहीं आया
वरना भूल चुका होता
बहुत कुछ ।