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कविता सुनाई पानी ने-7 / नंदकिशोर आचार्य
अनिल जनविजय
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छैनी की हर चोट
छील देती है मुझको
और उभार देती है
रूप तुम्हारा
तुम्हारा रूप है जो
छिलना है मेरा ।