कोई पर्याय नहीं होता
किसी संज्ञा का
सर्वनाम हो सकता है किसी का भी
संज्ञा नहीं मिलती किसी से
सर्वनाम घुल जाते एक-दूसरे में
जैसे मैं और तुम
हो सकते मिलकर हम
काटती है संज्ञा
जोड़ते हैं सर्वनाम
इसीलिए बस तुम कहता हूँ तुम्हें
कविता में नहीं लिखता हूँ
तुम्हारा नाम ।