भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आतंकवाद / ऋचा जैन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 14 अप्रैल 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋचा जैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छिपकली हूँ मैं, मेरा काम है दुम गिराना
और दुम गिरा के भाग जाना
मैं रौशनी पर नज़र रखता हूँ
रौशनी के लिए नहीं,
शिकार के लिए
कीट-पतंगे बेसुध होके नाचते हैं
और मेरा काम आसान हो जाता है

कई तरह की होती हैं ये रोशनियाँ
हर रौशनी का अपना अलग शिकार
हर शिकार का अपना अलग मज़ा
पार्क की रौशनी
व्यस्त सड़क की रौशनी
कैफ़े की रौशनी
स्कूल की रौशनी
मंदिर की रौशनी
मस्जिद की रौशनी
बस की रौशनी
ट्रेन की रौशनी
रौशनी ही रौशनी
इतनी रौनक़, इतनी रौशनी
बस-बस
यही तो मुझे बर्दाश्त नहीं
यही तो मुझसे देखा नहीं जाता
लेकिन तुम कीड़े-मकोड़ों
को ये बात समझ ही नहीं आती
आना पड़ता है मुझको बरबस
चुन-चुन के सबको खाने
और बस मैं आ जाता हूँ
शिकार करके भाग जाता हूँ
तुम दुम पकड़ते हो,
मैं दुम गिरा देता हूँ
तुम समझते हो मैं मर गया
छिपकली हूँ मैं
मेरा काम है दुम गिराना,
गिरा के नई उगाना