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अपनी ज़िद पर हारा था / अंजनी कुमार सुमन

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अपनी ज़िद पर हारा था
शायद वह बेचारा था

सबको नेमत बाँट गया
खुद किस्मत का मारा था

कैसे मीठे बोल कहे
सबसे मन तो खारा था

मन की बात कही खुद से
आखिर फिर क्या चारा था

हाँथों में था चाँद नहीं
पर आँखों का तारा था