भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चश्मा ललाट पर मत चढाइएगा / ललन चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:02, 12 मई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ललन चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह बच्चा ही है जो
सफेद को सफेद और स्याह को स्याह कहता है
बचकानी हरकत
किसी मूर्ख का गढ़ा हुआ मुहावरा है
उम्र और अनुभव के बढ़ने के साथ-साथ
नज़रें कमजोर हो जाती हैं
कमजोर नजरें बहुत गुनहगार होती हैं
बदल देती हैं नजरिया
जरुरी है कि समय-समय पर
नज़रों की जांच कराई जाएँ
हो सकता है नजदीकी ठीक हो
मगर दूरी दुरुस्त नहीं हो
कहीं सीढ़ियों से मंजिल पहुँचने के बजाय
पहुँच न जाएँ अस्पताल
यह भी तो हो सकता है कि
आप हों वर्णांधता के शिकार
हालांकि मैं नजर का डाक्टर नहीं हूँ
और न ही मांग रहा हूँ कोई नजराना
एक नेक सलाह पर गौर फरमाइएगा
चश्मे को ललाट पर मत लटकाएगा।