भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चार औरतें / दीपा मिश्रा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:33, 23 मई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपा मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चार औरतें
आस-पास बैठी थीं
आपस में
सुख दुःख बाँट रही थीं
पहली नाराज थी
रह-रह कर
अपनी शिकायतों की पोटली
खोल ले रही थी
दूसरी उदास थी
थकी हारी सी
अपने कर्मों को दोष देती
आंसू बहाती जा रही थी
तीसरी चिल्ला रही थी
पुरुषों के प्रति आक्रोश को
भला-बुरा अपशब्द कह
निकाल रही थी
चौथी औरत धीमे-धीमे
मुस्कुरा रही थी
अचानक वह खिलखिला कर हँसने लगी
बांकी तीनों की नज़रें
उसकी ओर मुड़ गई
अब वे तीनों आपस में
यह सुलझाने में लगी हैं कि
आखिर चौथी हँसी क्यों!