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तीन झरने / अलेक्सान्दर पूश्किन / वरयाम सिंह

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इस संसार के सीमाहीन दुखभरे निर्जन प्रान्तर में
प्रकट हुए हैं रहस्यमय तीन झरने :
यौवन का झरना — फुर्तीला और बेचैन
तेज़ी से बह रहा है उफनता, चमकता ।
दूसरा झरना भरा है काव्य-प्रेरणाओं से
निर्जन प्रान्तर में प्यास बुझाता है निर्वासितों की,
और तीसरा अन्तिम झरना — विस्मृति का
सबसे ज़्यादा मीठा, वही बुझाता है आग हृदय की ।

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
          Александр Пушкин
                Три ключа

В степи мирской, печальной и безбрежной,
Таинственно пробились три ключа:
Ключ юности, ключ быстрый и мятежный,
Кипит, бежит, сверкая и журча.
Кастальский ключ волною вдохновенья
В степи мирской изгнанников поит.
Последний ключ — холодный ключ забвенья,
Он слаще всех жар сердца утолит.

1827 г.