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झगड़ा / जय गोस्वामी / जयश्री पुरवार

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भाई झगड़ा करता है, इसलिए घर कम जाता हूँ ।
मेरे पास क्या बहुत कुछ सोना -दाना है ?
भाई के पास भी कुछ नहीं है ।

हम दोनो सिर्फ़ एक दूसरे को दोष देते रहते हैं लगातार,
रात हो जाती है,
चाँद उतर आता है नारियल के पेड़ पर

तिरस्कार करता है चाँद :
दोनो की ही तो उम्र हो आई है
दोनो का ही तो बढ़ गया है ब्लड प्रेशर
जाओ, सो जाओ ।

अपनी अपनी मसहरी उठाकर
हम दोनों घर के भीतर घुस जाते हैं ।
रात का चौकीदार सीटियाँ बजाता रहता है
इस तरह देता है पहरा ।

और पुराने आँगन में
गाल पर हाथ रखकर
सारी रात मुँह लटकाकर
बैठे रहते हैं हमारे झगड़ा - झंझट ।

जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित