भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किताब / जय गोस्वामी / जयश्री पुरवार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:01, 21 जून 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ तक पढ़ोगी मेरी यह किताब
नीले रंग की
हरेक पृष्ठ सूखे गरल से चिपका हुआ

बार बार जीभ पर
उँगली लगाकर ही खोलना पड़ेगा
हर पन्ना तुम्हें ।

लोग आएँगे तो देखेंगे
मेज़ पर अधखुली किताब
और उसकी बग़ल मे बैठी हो तुम ।

और
बैठे - बैठे ही न जाने कब
निस्तब्ध हो गईं ।

जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित