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मजदूर / चित्रा पंवार

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ये उतरे समंदर के गहरे मन में
उसके ताप को समेट कर
सूरज की लालटेन बना
टांग आए आसमान में
दुनिया रोशन हुई

इनके दुखों की परतों से बने
पृथ्वी के सारे विशाल पहाड़
पसीने की बूंदों से
नदियाँ
धैर्य से धरती ने जन्म लिया
बड़प्पन से आसमान ने

रात के ललाट पर बीचों बीच
दूध की गोल टिकुली रख
अंजुरीभर जुगनुओं को बिखेर
इन्होंने ही नाम दिया–चांद तारों का

यही थे प्रथम प्राणी
जिन्होंने पहचानी
मिट्टी की लौटा देने की जादूगरी
इन्होंने ही बोया सर्वप्रथम
उसकी कोख में प्रेम का बीज
हाँ यही थे
मनु श्रद्धा
आदम और हव्वा
जिनसे निर्मित हुई सृष्टि

इन्होंने अपने नाखूनों से खोदे रस्ते
ताकि अवरूद्ध ना हो पाए
सभ्यता का मार्ग
इनके रक्तरंजित पैरो से
लिखी गई पहली कविता
माथे की झुर्रियों में
दर्ज हुआ
आज तक का सबसे सच्चा इतिहास

हाँ यही थे
जिनसे प्रमाणित हुई
हड़प्पा मोहनजोदड़ो नगर विकास की
वैज्ञानिक सोच
ताजमहल का सौंदर्य
सिकंदर की अजेयता
देह में दौड़ती रुधिर नलिका बन
इन्होंने ही बचाया विपदा में जीवन
जुटाए जीने के लिए जरूरी
तमाम साजों सामान

सब कुछ देने वालों की
कटी फटी हथेली पर
मजदूर दिवस की चवन्नी रखने वालों
हो सके तो उनके हिस्से का
आभार रख देना
सम्मान रख देना।