भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरहद / अनीता सैनी
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:25, 13 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता सैनी }} {{KKCatKavita}} <poem> स्वयं का ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
स्वयं का नाम सुना होगा सरहद ने जब
मोरनी-सी मन ही मन हर्षाई होगी।
अस्तित्व अदृश्य पानी की परत-सा पाया
भाग्य थाम अँजुली में इतराई होगी।
मंशा मानव की झलकी होगी आँखों में
आँचल लिपट बहुत रोई होगी।
आँसू पोंछें होंगे जब सैनिक ने उसके
प्रीत में बावरी दिन-रैन न सोई होगी।
क़िस्से कहे होंगे सैनिक ने घर के अपने
सीने से लगकर अश्रु दोनों ने बहाए होंगे ।
कंकड़-पत्थर संग आघात सीसे-सा पाया
मटमैले स्वप्न दोनों ने नैनों में धोए होंगे।