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राजीपो / भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’
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तीन डग म्हैं आगै आऊं
दोय डग थे सामीं आवो
इण तरियां
आंतरो भी कम व्हैला
अहं भी पिघळैला दोनुवां रो
अर राजीपो भी हुय जावैला हाथो-हाथ
कांई सोचो हो?
डग बधावो तो सई
बैम रा गोटा गूंथता रैवोला
तो कीं नीं हुवैला।