हिंदी का लालित्य / सत्यम भारती
छंद सवैया में किया, गिरिधर का गुणगान।
लीलाओं का रस चखा, स्वयं हुए रसखान॥
फटी चदरिया नेह की, सीते रहा फ़कीर।
ढाई आखर प्रेम का, समझा गया कबीर॥
गद्य, पद्य में भर दिया, जीवन का लालित्य।
भारतेन्दु हैं हिन्द के, साहित्यिक आदित्य॥
कौन बना पाया भला, ऐसा जीवन-चित्र।
तुलसी घर-घर में बसे, रचकर राम-चरित्र॥
भावुकता से मुक्त कर, किया भाव-संवाद।
रच मानस-विज्ञान को, अद्भुत हुए प्रसाद॥
महाप्राण की साधना, जीवन एक समान।
तभी निराला हो सके, कविता के दिनमान॥
प्रकृति-प्रेम मृदु कल्पना, भावों का विस्तार।
इन्हीं गुणों से पंत को, जान रहा संसार॥
फक्कड़ भले स्वभाव से, पर जन की आवाज।
जनकवि नागार्जुन सदृश, झुकता है गिरिराज॥
मुक्तिबोध के बोध में, मध्यवर्ग-संघर्ष।
वे जन-मन के दूत हैं, कविता के उत्कर्ष॥