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छुट्टी के दिन / राम नाथ बेख़बर
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छुट्टी के दिन
करने के लिए जब
कुछ भी नहीं रहता
तब साफ कर देता हूँ
पुस्तकों पर जमी
महीनों की धूल
डाल देता हूँ
सूख रहे पौधों में
थोड़ा-सा-पानी
पढ़ लेता हूँ
पुस्तक में पड़े
तुम्हारे पत्र
सूँघ लेता हूँ
उस सूखे गुलाब को
जिसमें अब भी मौजूद है
तुम्हारे प्रेम की ख़ुशबू
बैठ जाता हूँ
उकेरने के लिए
कागज़ पर
शब्दों के सैकड़ों पुष्प
छुट्टी के दिन
जब इन कामों से
मिल जाती है छुट्टी
खोलकर बैठ जाता हूँ
तुम्हारी यादों की तह ।