सूख जाए
स्याही
टूट जाए कलम 
और
कुंद पड़ जाए
इसकी पैनी धार 
अगर यह
नहीं लिख सकती
फूल को फूल 
ख़ार को ख़ार
जब-जब कलम 
दिखाती है लाचारी 
किसी दरबार से बँध 
गाती है राग दरबारी 
तब-तब कलम 
अपने फर्ज़ से 
करती है गद्दारी 
कोई भी कलम 
तभी 
बड़ी होती है 
जब वह न्याय के पक्ष में 
सीना तानकर 
बेख़ौफ़ खड़ी होती है।