Last modified on 6 अगस्त 2023, at 17:01

याद आ जाते हैं / सुनील गंगोपाध्याय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:01, 6 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनील गंगोपाध्याय |अनुवादक=उत्प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्यार के लिए कंगाल हो जाना
मेरे इस जीवन से नहीं जा सका
मेरा कंगाल हो जाना नहीं जा सका
इस जीवन से प्यार के लिए,

वो, जो नदियाँ सूख गईं
मर कर खो गईं, भूत हो गईं
खरपतवार से भरे, जो दुखी मैदान
ग़ायब हो गए लोगों की भीड़ में
बचपन के सेमल के फूल
छज्जों पर अटकी फटी पतंग की फड़फड़ाहट
कुछ भी खोने का मन नहीं करता

मानो ये सब लौट आएँगे
जिस तरह अँधेरी सुरंग के उस पार
स्मृति में लौट आता है उजाला
जैसे नौजवान स्त्रियों के उपहास
झन-झन करते बज उठते हैं झरनों में
कभी नहीं खोते
पहाड़ों को फोड़कर अविरल निकल आते हैं,

कितने ही तरह के रंग मिले देश में
पुराने घर के अँधेरे कमरों की रिक्तता में भी
बड़ा-सा मुँह फाड़े ताकता रहता है ख़ालीपन
आकाश बिला जाता है
ज्वार में बह जाती हैं दोस्तियाँ, उम्र

इसी बीच हवा का तेज़ झोंका आकर
साँझ की भाषा में सवाल करता है :
तुम्हें याद है ?
और तभी छटपटा उठती है छाती
सारे विच्छेद के दुख याद आ जाते हैं ।

मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी