भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस के शामियाने को ताने चला / अविनाश भारती

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:32, 7 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अविनाश भारती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आस के शामियाने को ताने चला,
आदमी चाँद पर घर बनाने चला।

कैस लैला से उल्फ़त निभाने चला,
जान अपनी भला क्यूँ गँवाने चला।

चेहरे पर जोकरों-सा मुखौटा लिए,
बाप मेरा खिलौना कमाने चला।

सच परेशान है पर पराजित नहीं,
बात झूठी है ये, मैं बताने चला।

सेमरी दूर है, दिल्ली के राय से,
अपने दुखड़े को होरी सुनाने चला।

छीन 'अविनाश' मुँह से निवाला मेरा,
ये ज़माना मुझे आजमाने चला।