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रात / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय
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महुए सी गिरती है रात
चाँद इतना बड़ा जितनी हँसिया थी मेरे रसिया की
फिर रात जोर-जबर की
हँसिया उठाया और काट दी पंसली
दिन उगा
खून में
उसने कहा मासिक धर्म का खून है
खून मेरी पंसलियों से मेरे ह्रदय से गिर रहा था
टप टप
चाँद डूब गया था
हंसिया उठाके रसिया गया खेत
मैं गई रसोई में ।