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पहाड़ पर बारिश / कल्पना पंत

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बारिश बरसती है झार-झार
पहाड़ पर
टूट गिरती हैं शिलाऐं रात भर
बरसाती गाड़ बहती है भर-भर
सुबह जंगल जाती मस्तुए की
ब्वारी बह गयी रे पासी गधेरे में
थान के पुल के पास गिरी एक गाड़ी
रमुए के परिवार का कमाऊ पूत ले गयी
पार लखुआधार से आये भैजी ने बताया बल
कि उधर कहीं किसी गाड़ी के ऊपर एक बड़ा पत्थर गिर कितने अपडाउनवों को पीस गया
पहाड़ की बारिश में
मैं बाहर मटमैली काली गरजती बहती रातागाड़ का भैरव नाद सुन रही हूँ।