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आखिरी मुलाकात / कल्पना पंत

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उस आखिरी मुलाक़ात
के बीतने के बाद
अब तुमसे हुई जो बात
चांद फिर आया मेरे हाथ

तुम्हारी आवाज में वही तुम
कुछ शामें जी जिसके साथ
तुम्हारी तस्वीर से मिल आनलाइन
मैं आंखें बंद करती हूँ
अंतस में वही छवि उभरती है।

वाट्सऐप पर कभी-कभी
बात नहीं होती पर मुलाकात होती है।
बांचने के बहाने तुम
हाथों में थाम मेरा हाथ
फिर बैठते हो साथ
पार्क की वे शामें
वे सुनहरे दिन
क्या करुं तुम बिन?