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तेरे नाम / कल्पना पंत

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मैंने अग्नि की शलाकाएँ उठाईं
और कलेजे पर रख लीं
फिर कलेजे के रंग से कलाम लिखा
और तुझे नज़र कर दिया
मैंने बीहड़ों से कांटे हटा राहें बनाईं
फिर कांटों को दिल में समोकर
तुझे सलाम लिखा
उम्र का एक लम्बा अरसा
तेरी यादों में गुजारा
अब दिन ढले सारा
सफर तेरे नाम लिखा
तू जहाँ भी रहे खुशियाँ
तेरा दामन चूमें
मैंने सुख का
हर लम्हा तेरे नाम रखा
अब तू मिले न मिले
शाम तो आती होगी
मैंने अपने को तन्हा
सरेशाम रखा।