भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पीठ पर घर / इन्दु जैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:50, 16 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इन्दु जैन |संग्रह=यहाँ कुछ हुआ तो था / इन्दु जैन }} ...)
गाँव पर उगा है सूरज
गाँव उससे पहले
जाग चुका
ओस चमक रही है पीली धूप में
कुएँ की जगत पीली है
धोतियाँ भीगे झण्ड़ों-सी
सूखने को तैयार
धुँआ उठता है
सूरज की तरफ़
सदासुहागिन और केसू
पिघलने लगे
खेत चहकने लगे हैं,
बच्चों के पेट में
गुदगुदी मुट्ठी खोलती है
सागवान के पखवाड़े भील पत्ते
सँभाले हैं
कुर्सी की जून तक
पेड़ का वजूद
आदमी घर से निकलता है परेशान
और आश्वस्त
अपनी शाम की तरफ
उसकी पीठ पर
घर खड़ा है।