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पत्र / कजाल अहमद / जितेन्द्र कुमार त्रिपाठी

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चाँद ने भेजी कुछ पंक्तियाँ
सूरज के घर

‘‘इतने लम्बे समय के
इन्तज़ार के बाद भी
मुझे शर्म आती है तुमसे पूछने में :
तुम मुझसे निकाह क्यूँ नहीं कर लेते ?’’

और सूरज
जो था महज़ एक तारा
उसने जवाब दिया :

‘‘इतने साल तुमसे छुपते हुए
मैं तुम्हें बताना नहीं चाहता
कि मुझमें हिम्मत नहीं है ।’’