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उऋण कभी होना नहीं / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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236
उऋण कभी होना नहीं, मुझ पर बहुत उधार।
 कभी चुकाए ना चुके, इतना तेरा प्यार।।
237
जीवन में मुझको मिले, केवल तेरा प्यार।
जग में फिर इससे बड़ा, कोई ना उपहार।।
238
श्वास -श्वास प्रतिपल करे, इतना सा आख्यान।
जीवन में हरदम मिले, तुम्हें प्यार सम्मान।।
239
जीवन में बस तुम मिलो, मुझको तो हर बार।
इससे बढ़कर कुछ नहीं, इस जग का उपहार।।
240
गर्म तवे पर बैठकर, खाएँ कसम हज़ार ।
दुर्जन सुधरें ना कभी, लाख करो उपचार॥
241
चाहे तीरथ घूम लो,पढ़ लो सभी पुराण ।
छल -कपट मन में भरे, हो कैसे कल्याण ॥
242
वाणी में ही प्रभु बसे, मन में कपट कटार ।
लाख भजन करते रहो, जीवन है बेकार ॥
243
आचमन कटुक वचन का, करते जो दिन -रात ।
घर-बाहर वे बाँटते, शूलों की सौगात ॥