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शमशीर की धार हूँ / भावना जितेन्द्र ठाकर

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कमज़ोर बुनियाद नहीं शमशीर की धार-सी तेज़ तर्रार हूँ,
अश्क की आदी नहीं सहने में बेमिसाल हूँ।

ओज है मेरे रक्त की रवानी में पैरों की जूती न समझो सत्तात्मकों,
कुशाग्र बुद्धि का कम्माल हूँ।

वक्त की कठपुतली नहीं अपनी सियासत का शृंगार हूँ,
ख़यालो के आवागमन पर लकीरों की चाल बदलने में माहिर हूँ।

धनी हूँ हौसलों की उर में साहस का सार रखती हूँ,
हर जंग में अपना परचम लहराते जीतना बखूबी जानती हूँ।

संगम हूँ सरिताओं का,
धैर्य मेरी धुरी है डर भीतर टिकता नहीं सहनशीलता का विस्तृत प्रमाण हूँ।

वेदों का अर्थ हूँ, पुराणों की गाथा हूँ, उपनिषद का सार समझो संसार की संरचना हूँ।

झुकती नहीं झुकाना जानती हूँ,
आयुध नहीं कोई हाथ में, आँखों से वार काफ़ी है
आततायियों की प्रतिद्वंद्वी हूँ।

कसौटी की धार पर कब तक ठहरी रहूँ,
नारी हूँ नारायणी सम, नर से रत्ती भर कमतर नहीं।